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Sunil Chhetri:- Announces Retirement | football player sunil chhetri letest news |

 

Real Life Story of India's Football Legend Sunil Chhetri | Captain Fantastic





दोस्तों भारत में फुटबॉल इतना लोकप्रिय खेल नहीं है

 लेकिन कुछ लोग हैं, जो इसे भारत में पॉपुलर करने में अपनी जीज- जान से लगे हुए हैं। इन लोगों में पहले नाम है इंडियन फुटबॉल टीम के कैप्टन सुनील छेत्री का और दूसरा नाम है इंडिया टीम के कोच इगोर स्टेमिक ।

वही स्टेमिक जीने इंडिया वर्सेस पाकिस्तान मैच में रेड कार्ड मिला था ।

और इसका रीजन था पाकिस्तान टीम के खिलाड़ी को चीटिंग करता हुआ देख उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने उसके हाथ से बाल छन ली और इसी मैच में इंडिया ने पाकिस्तान को कर जीरो से हर दिया।

 इंडिया की तरफ से किया गए कर गोल में से तीन गोल सुनील छेत्री ने किया थे ।

सुनील छेत्री के बड़े में सबसे चौका देने वाली बात जो बहुत से भारतीयों को पता तक नहीं दुनिया भर के एक्टिव प्लेयर्स में से सबसे ज्यादा गोल करने वालों की लिस्ट में थर्ड नंबर पर हैं।

 उनसे आगे सिर्फ दो ही खिलाड़ी हैं रोनाल्डो और मेसी ।


दोस्तों सोचने वाली बात की इंडिया के पास एक ऐसा प्लेयर है जो दुनिया में सबसे ज्यादा गोल करने वालों की लिस्ट में थर्ड नंबर पर आता है ।

लेकिन फिर भी इंडिया फीफा वर्ल्ड कप के लिए एलिजिबल नहीं है।

 और यही सुनील छेत्री का सपना है की एक दिन भारत भी फीफा वर्ल्ड कप में खेले। सुनील क्षेत्रीय का जन्म तीन अगस्त 1984 को आंध्र प्रदेश में हुआ।

 उनके मम्मी पापा नेपाल से बिलॉन्ग करते हैं।

 उनके फादर के भी क्षेत्रीय इंडियन आर्मी में थे 

और उनके फादर के बार-बार ट्रांसफर होने के करण क्षेत्रीय का बचपन भारत के अलग-अलग शेरों में गुजरा ।

उनके स्कूल बार-बार चेंज होते रहे लेकिन जो चेंज नहीं हुआ वो था उनका फुटबॉल को लेकर जुनून ।


सुनील छेत्री की मम्मी सुशीला छेत्री खुद एक फुटबॉल प्लेयर रही हुई है।

 जिन्होंने नेपाल की फुटबॉल टीम के लिए कई मैचेस खेल और इन्हीं सब कर्म से क्षेत्रीय का फुटबॉल में इंटरेस्ट बचपन में ही जग गया था ।

फिर उन्होंने गंगटोक सिक्किम की अपनी स्कूल में फुटबॉल खेलने शुरू किया।

 स्टार्टिंग में तो वह सिर्फ शौक के लिए खेलते थे तो उनका बस एक ही मोटे था की फुटबॉल से भारत कोटा के थ्रू उन्हें कोई अच्छा सा कॉलेज मिल जाए क्योंकि भारत और फुटबॉल ही एक चीज थी जो उन्हें अच्छी तरह से आई थी।

 लेकिन धीरे-धीरे वो सीरियस हुए और उन्हें लगे लगा की वो अपने शौक फुटबॉल को ही अपना करियर बना सकते हैं।

 इसलिए वो 16 साल की उम्र में देश की सबसे नामी टाटा फुटबॉल अकादमी जॉइन करने के लिए दिल्ली आ गए और वहां प्रेक्टिस करने लगे और जल्द ही उन्हें वो मौका मिल गया


 जिसका उन्हें इंतजार था जब वो 12th क्लास में थे तब उन्हें मलेशिया में होने वाली एशिया स्कूल चैंपियनशिप 2001 में इंडिया को रिप्रेजेंट करने का मौका मिला ।

और इसी स्कूल लेवल चैंपियनशिप में क्षेत्रीय का खेल देखकर इंडिया के सबसे बड़े फुटबॉल क्लब मोहन बागान की नजर उन पर पड़ी ।

और उन्होंने क्षेत्रीय को साइन कर लिया उसके बाद से सुनील छेत्री ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा 


और फिर साल 2005 में उन्होंने इंडियन नेशनल फुटबॉल जो टीम में अपना पहले देबू मैच खेल यह इंडिया वर्सेस पाकिस्तान मैच था ।

जो खेल भी पाकिस्तान में ही गया था सुनील छेत्री को देखकर कोई अंदाज़ नहीं लगा सकता की वो अभी उन 40 साल के हैं 39 इयर्स की अपनी पुरी लाइफ फुटबॉल को डेडिकेट कर चुके सुनील छेत्री ने साल 2017 में अपने मेंटल और इंडियन फुटबॉल टीम के पूर्व खिलाड़ी सुब्रत भट्टाचार्य की बेटी सनम भट्टाचार्य से शादी कर ली ।

क्षेत्रीय को कई फॉरेन क्लब्स की तरफ से भी ऑफर मिले जैसे कंट्री सिटी इंग्लैंड ने 19 साल 2007 में अप्रोच किया और लंदन बेस्ड क्लब क्वींस पार्क रेंजर्स ने भी उन्हें ऑलमोस्ट साइन कर ही लिया था,  लेकिन यूके क परमिट नहीं मिलने के करण उनके कांटेक्ट में कुछ दिक्कत आ गई और वह नहीं खेल पाए और फिर फाइनली साल 2010 में सुनील छेत्री मोहम्मद सलीम और बाइचुंग भूतिया के बाद किसी इंटरनेशनल क्लब में खेलने वाले तीसरी खिलाड़ी बने ।

इनके रिकॉर्ड्स और अवार्ड इसकी बात करें तो ये बड़े क्रिकेटर्स को भी पीछे छोड़ते हैं

 इन्हें साल 2011 में अर्जुन अवार्ड साल 

2019 में पदम श्री 

और साल 2021 में मेजर ध्यानचंद खेल रतन अवार्ड से सम्मानित किया गया ।

इसके अलावा वो इंडिया के पहले ऐसे फुटबॉल है जिन्होंने तीन कॉन्टिनेंट में गेम खेल हैं वो इंटरनेशनल मैचेस में सबसे ज्यादा कल करने वाले भारतीय हैं ।

और इंडिया में सबसे ज्यादा हैट्रिक का रिकॉर्ड भी इन्हीं के नाम है ।

दोस्तों इंडिया में फुटबॉल को लोकप्रिय करने के लिए हमें सुनील छेत्री जैसे प्लेयर्स और मेंटर्स की जरूर है जो सिर्फ अपना फायदा ना सोचकर कंट्री की ओवरऑल भारत ग्रोथ में अपना योगदान दें रहे है।

आप इस बड़े में क्या सोचते हैं , सुनील छेत्री अपने इस कम में किस हद तक खर उतारे हैं ।

आप अपनी राय हमें कमेंट करके जरूर बताए।

और आज इसी बीच खबर आई है की महान फुटबॉलर सुनिल क्षेत्रीय वर्ल्ड कप से सन्यास लेने वाले है। 

Snapchat : how to delete my ai on snapchat,remove my Ai on snapchat, स्नैपचैट से my Ai ऑप्शन को केसे हटाए।

 

Snapchat: how to delete my ai on snapchat

Snapchat app 

नमस्कार स्वागत है,

 एक बार फिर से आप सभी का अपने ब्लॉग the Kailash Official में स्वागत है। आज के ब्लॉग में जानेंगे की कैसे हम अपने स्नैपचैट के My AI को यहां से रिमूव कर सकते हैं।

वैसे आपने काफी सारी वीडियो में देखा होगा लेकिन how to delete my ai on snapchat नहीं हो रहा होगा ।

सबसे पहले आप Snapchat app को ओपन करो उसके बाद अपनी प्रोफाइल पर लॉन्ग प्रेस करो।

देखो दोस्तों बेसिकली अगर हम गूगल को फॉलो करें तो गूगल बोलता है की आपको इसको लॉन्ग प्रेस करना है।

 इसके बाद चैट सेटिंग में जाना है, और यहां पर आपको रिमूव का ऑप्शन देखने को मिल जाएगा, ये बात किसके हिसाब से सही है गूगल बाबा की तरफ से

लेकिन दोस्तों जब हम यहां पर ऐसा कुछ भी देखते है तो हमें कुछ देखने को नहीं मिलता है। 

अभी काफी सारे लोग आपको बोलते हैं की आप सेटिंग में जाइए सेटिंग में जानें के बाद आपको नीचे चले जाना है।

 नीचे दोस्तों जब आप जाएंगे तो यहां पर आएगा क्लियर My AI Data। जब आप इसे क्लियर करते है तो आपका सारा डाटा क्लियर हो जायेगा लेकीन ऐसा कुछ नही होता है।

दोस्तों हम इसे क्लिक करते हैं तो यहां पर होता क्या है की जो आपने My AI के साथ मैसेज किया है वो ही केवल क्लियर होता है।

 
यहां पर जो आपकी My AI चैट दोस्तों वो यहां पर हटा नहीं है, 
तो अगर सीधी सी बात में आपको बोलूं दोस्तों तो आप Snapchat में My AI ऑप्शन को हटा नहीं सकते केवल और केवल जो चैट आपने किया होता है, केवल उसको ही आप क्लियर कर सकते हैं ।
और ये सच है जो मैंने आपको बताया अभी तक ऐसा कोई ऑप्शन नहीं है।

 मैं भी इन फ्यूचर आपको देखने को मिल जाएगा तो मैं आपको नेक्स्ट ब्लॉग में बता दूंगा की कैसे आप हटा सकते ।

धन्यवाद 🙏💕

Khatu Shyam: khatushyam ji story in hindi, khatushyamji, खाटूश्याम जी की कथा

 

Khatu Shyam: khatushyam ji story in hindi, khatushyamji, खाटूश्याम जी की कथा 


जय श्री श्याम 🚩📿

जय श्री श्याम बाबा 🙏🚩🙏

खाटू श्याम बाबा का प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित हैं ।


खाटू श्याम जी को भगवान श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है।

करोड़ों लोग खाटू श्याम जी की पूजा करते हैं। श्याम मंदिर में हर वक्त भक्तों का तांता लगा रहता और विशेष रूप से पिछड़े जिले में खाटूश्याम का विशाल मेला आयोजित होता है।


 जिसमें राजस्थान सहित अन्य प्रदेशों के श्रद्धालु भी बाबा के दर्शन करने आते है।


खाटू श्याम की कहानी महाभारत काल से शुरू होती है, जिस वक्त उनका नाम बर्बरीक था।
 बर्बरीक भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र था।बर्बरीक बचपन से ही बहुत बडे वीर योद्धा थे। उन्होने अपनी मां से युद्ध कला सीखी । बर्बरीक देवी शक्ति के बहुत बड़े भक्त थे। बर्बरीक ने दैवीय शक्ति की कठोर तपस्या की। बर्बरीक की कठोर तपस्या देखकर दैवीय शक्ति वहा प्रकट हुई। और कहा आंखे खोलो पुत्र, तुम्हारा कल्याण हो ,मैं तुम्हारी तपस्या से अति प्रसन्न हू बोलो क्या वरदान चाहिए। बर्बरीक कहते है माते, आपने दर्शन देकर कृतार्थ कर दिया अब तो एक ही इच्छा है की आपका आशीर्वाद सदा बना रहे और अपना संपूर्ण जीवन दिन दुखियों की सेवा में व्यतीत कर सकू । माता कहती है तथास्तु । तुम सदा दुर्बलो का सहारा बनोगे । मैं तुम्हे ऐसी शक्ति प्रदान करूंगी जो तीनों लोकों में किसी के पास नहीं है। तुम् शक्तियों का दुरुपयोग नही करोगे। भगवती शक्ति ने वरदान स्वरूप तीन बाण दिए और कहा ये बाण अपने लक्ष्य को भेदकर वापस लौट आएंगे । 
बर्बरीक अब अजय हो गए।


 वे अपनी माता के पास पहुंचे और दैवीय शक्ति के वरदान के बारे में बताया और कहा मैं पांडवो और कोरवो के मध्य हो रहे युद्ध में भाग लूंगा। उनकी माताजी कहती है कि मैं जानती हूं की तुम वीर हो, साहसी हो इसलिए मैं तुम्हें रोकूंगी नही लेकिन तुम मुझे वचन दो की इस युद्ध में तुम हारे का सहारा बनोगे। तुम हारने वाली की तरफ से लड़ोगे। बर्बरीक अपनी माता को वचन देकर वहा से युद्ध के लिय तीन बाण लेकर नीले घोड़े पर सवार होकर प्रस्थान करते है। 


भगवान श्री कृष्ण तो अंतर्यामी है, वे सबकुछ जानते थे की कोरव ये युद्ध हारेंगे लेकिन बर्बरीक फिर उनकी तरफ से लड़ेगा और इससे पांडवो को युद्ध जीतने में परेशानी होगी इसलिए रास्ते में ही श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का भेष बदलकर बर्बरीक को रोका और सोचा की बर्बरीक को रोकने का एक ही तरीका है की मुझे बर्बरीक का शीश का दान मांगना होगा क्योंकि बर्बरीक भी दानवीर थे किसी को भी कुछ मना नहीं करते थे। 

श्री कृष्ण कहते है रुको महावीर, कोन हो तुम, और इस कुरुक्षेत्र जो पांडवों और कोरवों का युद्ध क्षेत्र है। महावीर योद्धा कुरुक्षेत्र में क्या कर रहे हो। बर्बरीक श्री कृष्ण को कहते है कि है ब्राह्मण देव मैं घटोत्कच पुत्र हू,आप मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिए ब्राह्मण देव। 

मैं महाभारत के युद्ध में सम्मिलित होने आया हूं । श्री कृष्ण कहते हैं कि ऐसा केसे हो सकता है, तुम सिर्फ़ तीन बाण से युद्ध में भाग लेने आए हों।

 बर्बरीक जी कहते है कि है ब्राह्मण देव ये कोई साधारण बाण नही है। इनमे से एक बाण भी शत्रु सेना को ध्वस्त करने के लिए पर्याप्त है। और ऐसा करने के बाद बाण वापिस तरकस में लौट आयेगा। 

श्री कृष्ण कहते हैं, अच्छा। तो फिर इस पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को छेद कर दिखलाओ। बर्बरीक जी श्री कृष्ण की चुनौती स्वीकार कर पेड़ के पत्तों पर तीर चलाकर पेड़ के सभी पत्तों को भेद दिया। 

 और बाण श्री कृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा क्योंकि एक पत्ता उन्होंने अपने पैर के नीचे छुपा लिया। बर्बरीक जी श्री कृष्ण को कहते है कि आप अपना पैर यहां से हटा लीजिए वर्ना यह तीर आपके पैर को भी भेद देगा क्योंकि ये बिना लक्ष्य को भेदे वापस तरकश में नही आयेगा। 


श्री कृष्ण सोचते है को अगर में इस युद्ध में पांडवो को एक एक जगह छिपा भी दूंगा तो भी बर्बरीक के अचूक बाण उनको वहा भी हानि पहुंचा देंगे। श्री कृष्ण कहते हैं कि है वीर में तुम्हारे साहस की प्रशंसा करता हू। मै तुमसे दान स्वरूप कुछ मांगना चाहता हूं । बर्बरीक जी कहते है कि है ब्राह्मण देव अगर मेरे वश में हुआ तो मैं आपको दान अवश्य दूंगा, मै आपको वचन देता हू। श्री कृष्ण कहते हैं कि मुझे दान के रूप में तुम्हारे शीश का दान चाहिए। क्या ये दे सकते हो।


 यह सुनकर बर्बरीक जी को शक होता है की मेरे शीश दान से ब्राह्मण देव को क्या फायदा। ये कोई और ही है जो ब्राह्मण का भेष बदलकर आया है। बर्बरीक जी कहते है की कोन है आप, कृपा कर आप अपने वास्तविक रूप में आइए और मुझे अनुग्रहित करे। बर्बरीक के इतना विनती करने पर श्री कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ जाते है। बर्बरीक श्री कृष्ण को प्रणाम करते है और कहते है कि स्वयं वासुदेव मेरे शीश का दान मांगने आए, अवश्य कोई बात है। 


श्री कृष्ण कहते है की युद्ध भूमि के पूजन के लिय मुझे एक क्षत्रिय वीर की आवश्यकता है, और वो गुण तुम में है। इसलिए मैं तुम्हारे शीश का दान चाहता हूं। 


बर्बरीक जी कहते है की है प्रभु मैं आपको अपना शीश दान अवश्य दूंगा लेकीन मेरी दो इच्छाएं है।

 पहली यह की आप स्वयं मेरी देह को अग्नि देवोगे और 

दूसरी ये को मैं इस महाभारत का संपूर्ण युद्ध अपनी आंखो से देखता चाहता हू। 

तथास्तु कहकर श्री कृष्ण आशीर्वाद देते है और कहते है की है बर्बरीक टीम कलयुग में मेरे नाम से ही जानें जाओगे। तुम्हें कलयुग में लोग खाटू श्याम के नाम से जानेंगे।


 तुम हारे का सहारा बनोगे। 


फाल्गुन मास की द्वादशी को बर्बरीक जी ने अपने शीश का दान दिया। बर्बरीक को ब्रह्मा जी श्राप था की आपको मृत्यु पृथ्वी लोक में श्री कृष्ण द्वारा ही होगी। 


बर्बरीक का शीश युद्ध के समीप ही एक पहाड़ी पर सुसज्जित किया गया ,जहा से संपूर्ण महाभारत युद्ध को बर्बरीक द्वारा देखा जा सके।



संपूर्ण महाभारत युद्ध की समाप्ति पर पांडवों में ही आपसी बहस होने लगी है, की युद्ध की जीत का श्रेय किसे दिया जाय। तब श्री कृष्ण कहते है कि तुम्हें आपस में विवाद में पड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। 


 बर्बरीक का शीश संपूर्ण युद्ध का साक्षी है। अतैव उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है।

 वासुदेव और पांडव इस निर्णय को जानने के लिए बर्बरीक के पास पहुंचते हैं और कहते है की इस युद्ध को जीतने का श्रेय किसे जाता है। 

तब खाटूश्याम रूपी बर्बरीक जी कहते है की

 श्रीकृष्ण ने युद्ध में विजय प्राप्त कराने में सबसे महान कार्य किया।

 उनकी शिक्षा, उनकी उपस्थिति, उनकी युद्धनीति ही निर्णायक थी ।

उन्हें युद्धभुमि में सिर्फ उनका सुदर्शन चक्र घूमता हुआ दिखाई दिया ,जो कि शत्रु सेना को काट रहा था।


 इस धर्म युद्ध को जीतने का संपूर्ण श्रेय भगवान श्रीकृष्ण को ही जाता हैं। वीर बर्बरीक की सभी पांडव सराहना करते हैं। और भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांगते हैं क्योंकि वो जानते थे की श्री कृष्ण के बीना इस धर्म युद्ध को जीतना असंभव था।


 धर्म की विजय स्वयं वासुदेव कृष्ण के कारण ही संभव हो पाई है। 

भगवान कृष्ण के आशीर्वाद से बर्बरीक को श्याम नाम से पुकारा जाने लगा और आज खाटू श्याम जी महाराज के भक्त उनके दर्शन करने जाते हैं, और मनवांछित फल की प्राप्ति करते हैं। 

बोलो हारे के सहारे की जय🚩🙏🙏

बोलो तीन बाण धारी की जय🚩

बोलो खाटू श्याम की जय🚩

बोलो खाटू नरेश की जय🚩

बोलो नीले के असवार की जय🚩

बोलो भक्त और भगवान की जय🚩🙏

जय श्री श्याम 🚩🙏🚩

CAA• Reality of Citizenship Bill (CAA) , नागरिक संशोधन कानून क्या है? WHAT IS CAA,caa full form,CAA kya hai

नागरिकता संशोधन कानून आखिर क्या है?

 और इससे क्या होगा।


CAA 




 आपको आसान भाषा में समझाते हैं।

 CAA कानून 2019 पाकिस्तान अफगानिस्तान बांग्लादेश के उन अल्पसंख्यक की भारतीय नागरिकता के रास्ते खोलेगा, जो लंबे समय से भारत में रह रहे हैं।

 इस कानून के जरिए तीन देशों के छह गैर मुस्लिम प्रवासियों को भारत सरकार नागरिकता देगी।

 हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को भारतीय नागरिकता सरकार देना चाहती है।

 

31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए प्रवासियों के लिए यह कानून होगा।

 सबसे बड़ी बात सीएए किसी की ना नागरिकता छीनने वाला नहीं बल्कि नागरिकता देने वाला कानून है।

 सरकार ने मार्च के पहले हफ्ते में सीएए के नियम लागू करने की पूरी तैयारी कर ली है।

 सूत्रों के मुताबिक सरकार ने सीएए को लागू करने के लिए पोर्टल तैयार कर लिया है।

 नागरिकता के लिए आवेदन करने और नागरिकता देने की प्रक्रिया ऑनलाइन होगी। आवेदन करने वालों को वह साल बताना होगा जब उन्होंने दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया था।

 सूत्रों के अनुसार आवेदन करने वालों से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा।

 गृह मंत्रालय आवेदन की जांच कर नागरिकता जारी कर देगा।

 चुनाव से पहले सीएए लागू करने का संकेत गृह मंत्री अमित शाह पहले ही दे चुके हैं।

 विपक्षी दल सीएए के खिलाफ पहले से ही माहौल बना रहे हैं। 

खासकर मुस्लिमों के सबसे बड़े नेता होने का दावा करने वाले असदुद्दीन ओवैसी तो खुलकर सीएए की मुखालफत कर रहे हैं यह गलत कानून है भारत के आईन के खिलाफ है।

 मजहब की बुनियाद पर बनाया गया है, हम हरगिज कभी खिलाफ नहीं थे कि चाहे हिंदू सिख हो जो पाकिस्तान में रहते हैं अफगानिस्तान में रहते हैं, बांग्लादेश में रहते हैं, वो आ सकते हैं।

 हमारे वतन भारत और लॉन्ग टर्म वीजा देकर एक प्रोसेस है। उसका उसके बाद उनको भारत की शरीयत भी देते हैं।

 मगर यह जो कानून बनाया गया सि सीड को आप अकेले नहीं दे सकते ।

सीड को आपको एनपीआर एनआरसी से देखने की जरूरत है और ये इसका मकसद एक ही है के मुस्लिम अकलियत को दलितों को और उन गरीबों को चाहे किसी मजहब के हो उनको तंग किया जाए तो मजलिस इसके कानून के खिलाफ थी हमेशा इसकी मुखालिफत करते रहेगी।

Dayanand Saraswati Jayanti: maharishi Dayanand Saraswati Jayanti, story,moral,life, biography, speech,quotes




महर्षि दयानंद सरस्वती जी जयंती 

 मैं कुछ नाम गिनवा रहा हूं, आपको यह बताना है कि इनके बीच समानता क्या है, कौन सा धागा इन सबको एक दूसरे से जोड़ता है।


 शहीद भगत सिंह, वीर सावरकर, मदनलाल धींगरा, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और लाला लाजपतराय,

 समानता यह है कि यह सब भारत भक्त थे।

 और यह सब जिस मशाल की रोशनी में स्वतंत्रता के पथ पर आगे बढ़े, उस मशाल का नाम था,

 महर्षि दयानंद सरस्वती

 नमस्कार मैं हूं कैलाश मीणा आज मैं आपको उस ज्योतिपुंज उसी युग पुरुष के बारे में बताऊंगा,

 जिसे बाएं हाथ से लिखे हुए इतिहास में वह स्थान, वह मान नहीं मिला जो मिलना चाहिए था।

 आप इस दुनिया को अपना सर्वश्रेष्ठ दीजिए आपके पास सर्वश्रेष्ठ लौटकर आएगा।

 आर्यावर्त उठ, जाग, आगे बढ़ समय आ गया है, नए युग में प्रवेश कर ।

यह शब्द है भारत की महान ऋषि परंपरा में जन्मे श्री मूल शंकर तिवारी जिन्हें आज हम स्वामी दयानंद सरस्वती के नाम से याद करते हैं।


 स्वामी जी गुलाम भारत में जन्मे थे जब कंपनी सरकार अपने खजाने भरने के लिए भारत की अस्मिता और गौरव को दिन रात लूट रही थी।

 अंग्रेज जानते थे कि भारत में आस्था का ज्ञान और स्वाभिमान की जड़ें कितनी गहरी हैं, उन्हें डर था कि बिना संस्कृति की जड़ कांटे भारत को ज्यादा दिनों तक गुलाम बनाए रखना संभव नहीं होगा।


 लॉर्ड मैकाले का वह कथन तो आपको याद ही होगा कि भारतीयों में हीन भावना भर दी तो उन्हें विश्वास दिला दो कि उनकी संस्कृति पिछड़ी हुई है। परंपराएं और मान्यताएं पिछड़ी हुई है।

 यहां तक कि भारतीयों का पहनावा उनका खान-पान बोली-भाषा सब छोड़ उन्हें आगे बढ़ना है तो अंग्रेजों के पदचिन्हों पर चलना चाहिए।


 गोरी अर्थात अंग्रेजी सरकार को अपना माई-बाप समझना चाहिए ।

भारत में एक ऐसी नकली परम्परा पैदा करो जो देखने में भारतीय हो लेकिन अंदर अंग्रेजीयत कूट-कूट कर भरी हो।

 अंग्रेज़ीयत का यही धंधा इन्हें सदियों-सदियों तक हमारा गुलाम बनाए रखेगा। और भारत में ब्रिटिश राज का सूर्य कभी अस्त नहीं होगा।

 स्वामी दयानंद सरस्वती गोरी चमड़ी का यह काला धंधा समझ चुके थे, उन्होंने उद्घोष किया वेदों की ओर लौटो 

 

इसे भारत का दुर्भाग्य कह लें या फिर तथाकथित बुद्धिजीवियों की कलुषित सोच जिन्होंने सिकंदर सिलेबस के नाम पर भगोड़े अकबर बाबर तो हमें बचपन से हटा दिए,

 लेकिन स्वामी जी के विचारों से सदैव दूर रखा ।

जब अंग्रेजी पढ़े हुए तमाम भारतीय बुद्धिजीवी अंग्रेजों को अपना मसीहा मानने लगे थे, और अपनी झूठी शान बढ़ाने के लिए अंग्रेजों के पीछे दुम हिलाते फिर थे।


 महर्षि दयानंद सरस्वती हिंदी भाषा और महान भारतीय वैदिक परंपरा का प्रचार निडर होकर किया करते थे।

 यही कारण था कि फिरंगियों की नजरे स्वामी जी पर सदैव बनी रहती थी।

 दमनकारी अंग्रेजी राज में जब लोग अंग्रेजों के आगे आंख उठाने से डरते थे तब स्वामी जी खुलकर कहते थे कि भारत सिर्फ भारतीयों के लिए है, अंग्रेजों को यहां से जाना ही होगा।

 

स्वामी जी ने ही सबसे पहले स्वराज का नारा दिया था।


 जिसे आगे चलकर श्री बाल गंगाधर तिलक ने जनमत का मूलमंत्र बना दिया।

 सरदार पटेल ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि भारत की स्वतंत्रता की नींव वास्तव में स्वामी दयानंद सरस्वती ने ही डाली थी।

 सरकारी पाठ्यक्रमों में हमें कभी बताया ही नहीं कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की योजना बनाने वाले अग्रणी लोगों में स्वामी दयानंद छोटी सबसे प्रमुख मेह क्यों नहीं बताया।


 यह तो आप भी जानते हैं ऐसे व्यक्ति को देश का हीरो कैसे बना दे जो वेदों का ज्ञाता को और सनातन धर्म में अटूट विश्वास रखता हैं।

अगर स्वामी जी से जीवित होते तो हमारे सिलेबस में उन्हें जगह जरूर मिल जाती है। खैर तब नहीं तो अब सही मैं और आप स्वामी जी, सावरकर, बाल गंगाधर तिलक जैसे महापुरुषों को अपने मन में स्थान दें अपने बच्चों को उनकी कहानियां सुनाकर बड़ा करें।


 तो वह दिन दूर नहीं जब पाठ्यक्रम बदल दिए जाएंगे स्वामी जी का एक किस्सा सुनाता हूं।

  1857 के आंदोलन से कुछ साल पहले एक दिन बिहार के महान स्वतंत्रता सेनानी बाबू कुंवर सिंह ने स्वामी जी से शंका व्यक्त की स्वामी जी क्या हम इस आंदोलन में सफल हो पाएंगे।

 स्वामी जी मुस्कराए और बड़ी विनम्रता से कहा कुंवर भारत 100 वर्षों में गुलाम हुआ है इसे स्वतंत्र होने में भी लगभग इतना ही समय लगेगा।


 अजय कुमार सिंह ने पूछा स्वामी जी फिर हमारा यह आंदोलन इसका क्या होगा हम इतने प्राणों की आहुति के व्रत में दे रहे हैं।

 स्वामी जी ने कहा गुरुवर स्वतंत्रता शक्ति नहीं मिलती अनेकों अनेक वर्षों तक असंख्य प्राणों की आहूति देनी होगी।

 संघर्ष की एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना होगा ।

हम तो बस वह शुरुआत कर रहे हैं जो आज तक किसी ने नहीं की कोई तो सूद चुकाए कोई तो जब वाले उसे इंकलाब का जो आज तक उधार सा है ।


स्वामी जी जानते थे कि 1857 में विजय नहीं मिलेगी।

 लेकिन बिगुल तो बज गया या भारतवर्ष के प्राणों में कंपन तो होगा।

 धरती डोले गीतों और साहिबा हादसों की छाती में धंसी हुई हिंदुस्तानी गोलियां महारानी विक्टोरिया को डराएंगे ।

तो यह भी क्या कम है स्वामी जी ने जो 100 वर्षों की भविष्यवाणी की थी वह सच हुई।


 1947 आते-आते क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के पैरों तले से भारत की जमीन खींच ली।

 एक बार की बात है, ब्रिटेन जाने वाले पानी के जहाज में में एक बार स्वामी जी की मुलाकात तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड नार्थब्रुक से हुई।

 पावर के दंभ में चूर गवर्नर ने स्वामी जी से कहा यह अपने व्याख्यान की शुरुआत में आप जो ईश्वर की स्तुति करते हैं,

 क्या उसमें यह प्रार्थना भी शामिल है कि अंग्रेज सरकार का कल्याण हो।

  जवाब में क्या सुनना चाहता है और अगर उसके मन का उत्तर नहीं मिला तो परिणाम कितने भयावह हो सकते हैं।


 लेकिन स्वामी जी ठहरे भारत की ऋषि परंपरा के अनुयाई असत्य कैसे बोलें ।

स्वामी जी ने उत्तर दिया अंग्रेज सरकार के लिए प्रार्थना तो करता हूं गवर्नर साहब।

 की जितनी जल्दी हो सके भारत में अंग्रेजी राज का सर्वनाश हो जाए। और हमें पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त हो।

 यह सुनकर गवर्नर जी के कान सुन्न हो गए ।

उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि भारत का एक विशेष उनके हजारों मिलिट्री जनरल से ज्यादा निर्भीक हो सकता है। निडर हो सकता है ।


यह कहानी आज मैंने आपको क्यों सुनाई है क्योंकि जो अमेरिका के महान दार्शनिक मार्क्स कवि ने कहा है,

 पीपल विदाउट नॉलेज अपडेट पार्ट हिस्ट्री ओरिजिनल एंड कल्चर और लाइक फ्री विदाउट फ्रूट्स 

जो अपने इतिहास अपनी उत्पत्ति और अपनी संस्कृति से अनभिज्ञ है, वह व्यक्ति जुड़े ही वृक्ष से ज्यादा और कुछ नहीं है हम भारतवासी तो सदैव से ही ज्ञान गंगा में मछली की तरह तैरते और जीते रहे हैं,

 लेकिन पिछले कुछ दशकों में हम पर अज्ञान थोप दिया गया।

 हमें जल बिन मछली वाली दयनीय स्थिति में पहुंचा दिया गया।

 जो हुआ वह गलत था, लेकिन इससे भी ज्यादा गलत होगा कि हम अपने अज्ञान को नियति मानकर स्वीकार कर लें।

 स्वामी जी कहते थे अज्ञानी होना गलत नहीं है, अज्ञानी बने रहना गलत है।

 इसलिए जागो भारतीयों,

रहो चाहे जहां लेकिन अपनी संस्कृति अपने साहित्यिक हम अपनी महान विभूतियों पर सदैव गर्व करते रहो ।


आज परम आदरणीय स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती है।