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Dayanand Saraswati Jayanti: maharishi Dayanand Saraswati Jayanti, story,moral,life, biography, speech,quotes




महर्षि दयानंद सरस्वती जी जयंती 

 मैं कुछ नाम गिनवा रहा हूं, आपको यह बताना है कि इनके बीच समानता क्या है, कौन सा धागा इन सबको एक दूसरे से जोड़ता है।


 शहीद भगत सिंह, वीर सावरकर, मदनलाल धींगरा, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान और लाला लाजपतराय,

 समानता यह है कि यह सब भारत भक्त थे।

 और यह सब जिस मशाल की रोशनी में स्वतंत्रता के पथ पर आगे बढ़े, उस मशाल का नाम था,

 महर्षि दयानंद सरस्वती

 नमस्कार मैं हूं कैलाश मीणा आज मैं आपको उस ज्योतिपुंज उसी युग पुरुष के बारे में बताऊंगा,

 जिसे बाएं हाथ से लिखे हुए इतिहास में वह स्थान, वह मान नहीं मिला जो मिलना चाहिए था।

 आप इस दुनिया को अपना सर्वश्रेष्ठ दीजिए आपके पास सर्वश्रेष्ठ लौटकर आएगा।

 आर्यावर्त उठ, जाग, आगे बढ़ समय आ गया है, नए युग में प्रवेश कर ।

यह शब्द है भारत की महान ऋषि परंपरा में जन्मे श्री मूल शंकर तिवारी जिन्हें आज हम स्वामी दयानंद सरस्वती के नाम से याद करते हैं।


 स्वामी जी गुलाम भारत में जन्मे थे जब कंपनी सरकार अपने खजाने भरने के लिए भारत की अस्मिता और गौरव को दिन रात लूट रही थी।

 अंग्रेज जानते थे कि भारत में आस्था का ज्ञान और स्वाभिमान की जड़ें कितनी गहरी हैं, उन्हें डर था कि बिना संस्कृति की जड़ कांटे भारत को ज्यादा दिनों तक गुलाम बनाए रखना संभव नहीं होगा।


 लॉर्ड मैकाले का वह कथन तो आपको याद ही होगा कि भारतीयों में हीन भावना भर दी तो उन्हें विश्वास दिला दो कि उनकी संस्कृति पिछड़ी हुई है। परंपराएं और मान्यताएं पिछड़ी हुई है।

 यहां तक कि भारतीयों का पहनावा उनका खान-पान बोली-भाषा सब छोड़ उन्हें आगे बढ़ना है तो अंग्रेजों के पदचिन्हों पर चलना चाहिए।


 गोरी अर्थात अंग्रेजी सरकार को अपना माई-बाप समझना चाहिए ।

भारत में एक ऐसी नकली परम्परा पैदा करो जो देखने में भारतीय हो लेकिन अंदर अंग्रेजीयत कूट-कूट कर भरी हो।

 अंग्रेज़ीयत का यही धंधा इन्हें सदियों-सदियों तक हमारा गुलाम बनाए रखेगा। और भारत में ब्रिटिश राज का सूर्य कभी अस्त नहीं होगा।

 स्वामी दयानंद सरस्वती गोरी चमड़ी का यह काला धंधा समझ चुके थे, उन्होंने उद्घोष किया वेदों की ओर लौटो 

 

इसे भारत का दुर्भाग्य कह लें या फिर तथाकथित बुद्धिजीवियों की कलुषित सोच जिन्होंने सिकंदर सिलेबस के नाम पर भगोड़े अकबर बाबर तो हमें बचपन से हटा दिए,

 लेकिन स्वामी जी के विचारों से सदैव दूर रखा ।

जब अंग्रेजी पढ़े हुए तमाम भारतीय बुद्धिजीवी अंग्रेजों को अपना मसीहा मानने लगे थे, और अपनी झूठी शान बढ़ाने के लिए अंग्रेजों के पीछे दुम हिलाते फिर थे।


 महर्षि दयानंद सरस्वती हिंदी भाषा और महान भारतीय वैदिक परंपरा का प्रचार निडर होकर किया करते थे।

 यही कारण था कि फिरंगियों की नजरे स्वामी जी पर सदैव बनी रहती थी।

 दमनकारी अंग्रेजी राज में जब लोग अंग्रेजों के आगे आंख उठाने से डरते थे तब स्वामी जी खुलकर कहते थे कि भारत सिर्फ भारतीयों के लिए है, अंग्रेजों को यहां से जाना ही होगा।

 

स्वामी जी ने ही सबसे पहले स्वराज का नारा दिया था।


 जिसे आगे चलकर श्री बाल गंगाधर तिलक ने जनमत का मूलमंत्र बना दिया।

 सरदार पटेल ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि भारत की स्वतंत्रता की नींव वास्तव में स्वामी दयानंद सरस्वती ने ही डाली थी।

 सरकारी पाठ्यक्रमों में हमें कभी बताया ही नहीं कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की योजना बनाने वाले अग्रणी लोगों में स्वामी दयानंद छोटी सबसे प्रमुख मेह क्यों नहीं बताया।


 यह तो आप भी जानते हैं ऐसे व्यक्ति को देश का हीरो कैसे बना दे जो वेदों का ज्ञाता को और सनातन धर्म में अटूट विश्वास रखता हैं।

अगर स्वामी जी से जीवित होते तो हमारे सिलेबस में उन्हें जगह जरूर मिल जाती है। खैर तब नहीं तो अब सही मैं और आप स्वामी जी, सावरकर, बाल गंगाधर तिलक जैसे महापुरुषों को अपने मन में स्थान दें अपने बच्चों को उनकी कहानियां सुनाकर बड़ा करें।


 तो वह दिन दूर नहीं जब पाठ्यक्रम बदल दिए जाएंगे स्वामी जी का एक किस्सा सुनाता हूं।

  1857 के आंदोलन से कुछ साल पहले एक दिन बिहार के महान स्वतंत्रता सेनानी बाबू कुंवर सिंह ने स्वामी जी से शंका व्यक्त की स्वामी जी क्या हम इस आंदोलन में सफल हो पाएंगे।

 स्वामी जी मुस्कराए और बड़ी विनम्रता से कहा कुंवर भारत 100 वर्षों में गुलाम हुआ है इसे स्वतंत्र होने में भी लगभग इतना ही समय लगेगा।


 अजय कुमार सिंह ने पूछा स्वामी जी फिर हमारा यह आंदोलन इसका क्या होगा हम इतने प्राणों की आहुति के व्रत में दे रहे हैं।

 स्वामी जी ने कहा गुरुवर स्वतंत्रता शक्ति नहीं मिलती अनेकों अनेक वर्षों तक असंख्य प्राणों की आहूति देनी होगी।

 संघर्ष की एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना होगा ।

हम तो बस वह शुरुआत कर रहे हैं जो आज तक किसी ने नहीं की कोई तो सूद चुकाए कोई तो जब वाले उसे इंकलाब का जो आज तक उधार सा है ।


स्वामी जी जानते थे कि 1857 में विजय नहीं मिलेगी।

 लेकिन बिगुल तो बज गया या भारतवर्ष के प्राणों में कंपन तो होगा।

 धरती डोले गीतों और साहिबा हादसों की छाती में धंसी हुई हिंदुस्तानी गोलियां महारानी विक्टोरिया को डराएंगे ।

तो यह भी क्या कम है स्वामी जी ने जो 100 वर्षों की भविष्यवाणी की थी वह सच हुई।


 1947 आते-आते क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के पैरों तले से भारत की जमीन खींच ली।

 एक बार की बात है, ब्रिटेन जाने वाले पानी के जहाज में में एक बार स्वामी जी की मुलाकात तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड नार्थब्रुक से हुई।

 पावर के दंभ में चूर गवर्नर ने स्वामी जी से कहा यह अपने व्याख्यान की शुरुआत में आप जो ईश्वर की स्तुति करते हैं,

 क्या उसमें यह प्रार्थना भी शामिल है कि अंग्रेज सरकार का कल्याण हो।

  जवाब में क्या सुनना चाहता है और अगर उसके मन का उत्तर नहीं मिला तो परिणाम कितने भयावह हो सकते हैं।


 लेकिन स्वामी जी ठहरे भारत की ऋषि परंपरा के अनुयाई असत्य कैसे बोलें ।

स्वामी जी ने उत्तर दिया अंग्रेज सरकार के लिए प्रार्थना तो करता हूं गवर्नर साहब।

 की जितनी जल्दी हो सके भारत में अंग्रेजी राज का सर्वनाश हो जाए। और हमें पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त हो।

 यह सुनकर गवर्नर जी के कान सुन्न हो गए ।

उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि भारत का एक विशेष उनके हजारों मिलिट्री जनरल से ज्यादा निर्भीक हो सकता है। निडर हो सकता है ।


यह कहानी आज मैंने आपको क्यों सुनाई है क्योंकि जो अमेरिका के महान दार्शनिक मार्क्स कवि ने कहा है,

 पीपल विदाउट नॉलेज अपडेट पार्ट हिस्ट्री ओरिजिनल एंड कल्चर और लाइक फ्री विदाउट फ्रूट्स 

जो अपने इतिहास अपनी उत्पत्ति और अपनी संस्कृति से अनभिज्ञ है, वह व्यक्ति जुड़े ही वृक्ष से ज्यादा और कुछ नहीं है हम भारतवासी तो सदैव से ही ज्ञान गंगा में मछली की तरह तैरते और जीते रहे हैं,

 लेकिन पिछले कुछ दशकों में हम पर अज्ञान थोप दिया गया।

 हमें जल बिन मछली वाली दयनीय स्थिति में पहुंचा दिया गया।

 जो हुआ वह गलत था, लेकिन इससे भी ज्यादा गलत होगा कि हम अपने अज्ञान को नियति मानकर स्वीकार कर लें।

 स्वामी जी कहते थे अज्ञानी होना गलत नहीं है, अज्ञानी बने रहना गलत है।

 इसलिए जागो भारतीयों,

रहो चाहे जहां लेकिन अपनी संस्कृति अपने साहित्यिक हम अपनी महान विभूतियों पर सदैव गर्व करते रहो ।


आज परम आदरणीय स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती है।

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